
20/12/2024
ये पटना तारीख़ी ख़ुदाबख़्श लाइब्रेरी का पुराना मंज़र है, 1934 के ज़लज़ले में इसकी पुरानी इमारत टूट गई थी, तब ये इमारत बनी। अब तो इसके ऊपर भी एक फ़्लोर बना दिया गया है। और रिनोवेशन के नाम पर इसके ऊपर भद्दा सा टाइल्स भी।
29 अक्तूबर 1891 में जब इस लाइब्रेरी को खोला गया तब इसकी कोई बहुत बड़ी इमारत नही थी। लेकिन इस लाइब्रेरी के पास जो किताबों का जो संग्रह था, उसकी ख्याति दूर दूर तक थी, और उसी चीज़ ने इसके स्थापना के 12 साल बाद, यानी जनवरी 1903 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्ज़न को पटना में गंगा किनारे स्थित इस लाइब्रेरी का दौरा करने पर मजबूर कर दिया।
जनवरी 1934 में एक बहुत ख़तरनाक ज़लज़ला बिहार में आया, जिससे काफ़ी जान माल का नुक़सान हुआ, ख़ुदाबख़्श लाइब्रेरी की ऊपरी इमारत को भी नुक़सान पहुँचा, चूँकि ऊपरी हिस्सों में किताब को नही रखा जाता था, इसलिए किताब को कोई नुक़सान नही पहुँचा। बिहार सरकार ने इमारत का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह से ढाह देने का हुक्म दिया। इस दौरान नीचे की मंज़िल में रखी गई तमाम किताबों को अलमीरा सहीत बग़ल की बिहार यंग मेन इन्स्टिचूट की इमारत में रखा गया। कुछ दिन बाद हुकूमत ने लाइब्रेरी के लिए नई इमारत बनाने का हुक्म जारी किया।
इसकी ज़िम्मेदारी पटना डिविज़न के इग्ज़ेक्युटिव एंजिनीयर करीम साहब को दी गई। लाइब्रेरी के लिए इस्लामिक आर्किटेक्चर पर बेस्ड एक अच्छा नक़्शा बना कर बुनियाद रखी गई। लाल और भूरे रंग के पत्थर मंगाएँ गए, और उसे तराशने के लिए राजिस्थान से कारीगर आए। एक साल में इमारत बन कर तय्यार हो गई तो बिहार के गवर्नर ख़ुद मुआयना करने आए। किताबों के रखने के लिए लाइब्रेरी में अलमारी कलकत्ता से मंगाई गईं। लाइब्रेरी की लाल रंग की इमारत काफ़ी खूबसूरत लग रही थी। और इस तरह से नई इमारत में लाइब्रेरी शिफ़्ट हुई। अभी कुछ साल गुज़रे ही थे कि दूसरी जंग ए अज़ीम की शुरुआत हो गई। पटना पर हवाई हमले का ख़तरा था, लाल रंग को दूर से देखा जा सकता था, इसलिए जल्दी से उसके उपर भूरे रंग से पोताई की गई। वलीउद्दीन ख़ुदाबख़्श जो उस समय लाइब्रेरी के सेक्रेटेरी थे; ने आनन फ़ानन में जितनी भी नायाब किताबें थीं; उन्हें पटना से दूर अलग अलग जगह शिफ़्ट किया; जहां हवाई हमले का ख़तरा कम हो। जंग ख़त्म होने के बाद सारी किताबों को वापस पटना ला कर लाइब्रेरी में शिफ़्ट किया गया। ये वो दौर था जब लाइब्रेरी की हिफ़ाज़त लोग अपनी जान से अधिक किया करते थे। और आज काल लाइबेरी में स्टाफ़ की कमी इस लेवल पर है कि चीज़ें मिलती ही नहीं हैं, जो बड़ा अफ़सोसनाक है।
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Lost Muslim Heritage Of Bihar