Dr. B R Ambedkar Library Ramsara - Fazilka Punjab

Dr. B R Ambedkar Library Ramsara - Fazilka Punjab Founder and Director :- Amarjeet Bodhi

सभी को नमो बुद्धाय जी
29/12/2024

सभी को नमो बुद्धाय जी

साँची स्तूप का इतिहास इस प्रकार है : -साँची स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था।यह भार...
19/11/2024

साँची स्तूप का इतिहास इस प्रकार है : -
साँची स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था।
यह भारत की सबसे पुरानी पत्थर की संरचनाओं में से एक है।
साँची स्तूप, बौद्ध धर्म से जुड़ा है और बौद्ध लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
साँची स्तूप को 1989 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
साँची स्तूप के बारे में कुछ और खास बातें:
साँची स्तूप, मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले के सांची शहर में स्थित है।
यह शहर, भोपाल से 46 किलोमीटर दूर है।
साँची स्तूप, एक पहाड़ी चोटी पर बना है।
साँची स्तूप, वैदिक काल के दफ़न टीले हैं।
साँची स्तूप, विधि चक्र या धर्म का प्रतीक है।
साँची स्तूप के प्रवेश द्वार, प्रारंभिक शास्त्रीय कला के बेहतरीन उदाहरण हैं।
साँची स्तूप के प्रवेश द्वारों पर बुद्ध या अशोक के जीवन के दृश्य उकेरे गए हैं।

12/10/2024

अशोक विजयदशमी के महान बौद्ध पर्व की सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएं 👏🎉

02/06/2024
नरसिंह गाथा यानी बुध को ही नरसिंह कहा जाता है।          नरसिंह-The Lion 🦁 of Man !जिस समय अपने पिता राजा शद्धोधन के आग्र...
05/05/2024

नरसिंह गाथा यानी बुध को ही नरसिंह कहा जाता है।
नरसिंह-The Lion 🦁 of Man !

जिस समय अपने पिता राजा शद्धोधन के आग्रह पर ‘भगवा बुध’ कपिलवस्तु पधारे थे, उस समय राहुल-माता ने राहुल को इन्हीं शब्दों में तथागत का परिचय दिया था।

(१) स्निग्ध, कृष्ण वर्ण के कोमल तथा घुंघराले (इनके) केश है। सूर्य के सदृश निर्मल धरातल युक्त ( इनका ) ललाट है। सुंदर, ऊंची, मृदु एवं लंबी (इनकी) नाशिका है। ऐसे नरसिंह (श्रेष्ठ पुरुष ) अपने रशिम जाल को बिखेरे हुए हैं।
(२) जिनके चरण रक्त-वर्ण च्रक से अलंकृत हैं, जिनकी एड़ी सुन्दर हैं, जिनके चरण चंवर तथा छत्र से सुशोभित हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है।
(३) ये जो सुकुमार शाक्य कुमार है, ये जो सुन्दर चिन्हों से युक्त संपूर्ण शरीर से संपन्न है। जिन्होने लोकहित के लिए गृहत्याग किया है,वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
(४) जिनका मुख पूर्ण चन्द्र के समान प्रकाशित है, ये जो नरों में हाथी के समान हैं तथा देवताओं और नरों सभी के प्रिय हैं, ये जो मद-मस्त गजराज की तरह चले जा रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
(५) ये जो अग्र *खत्तिय (क्षत्रिय) कुलोत्पन्न हैं, ये जिनके चरणो की देव-मनुष्य सभी वंदना करते हैं, ये जिनका चित्त शील-समाधी में सुप्रतिष्ठित हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है।
(६) ये जिनकी नासिका चौड़ी तथा सुडौल है, जो नरों में वृषभ के समान हैं, ये जिनके नेत्र सुनील वर्ण हैं, ये जिनकी भौएं इन्द्रधनुष के समान हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है। (७) ये जिनकी ग्रीवा गोलाकार हैं, ये जिनकी ठोढ़ी मृगराज के समान है, ये जिनका वर्ण सुवर्ण के समान हैं, आकर्षक हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
(८) ये जिनकी वाणी स्निग्ध हैं, गंभीर हैं, सुन्दर हैं, ये जिनकी जिह्वा सिंदूर के समान रक्तवर्ण हैं, ये जिनके मुंह में श्वेत वर्ण के चालीस-चालीस दांत हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है। (९) ये जिनके केस सुरमे के समान सुनील वर्ण हैं, ये जिनका ललाट कञ्चन के समान दीप्त हैं, ये जिनका शरीर औषधि-तारे के समान शुभ्र वर्ण हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है। (१०) ये जो तारागण से घिरे चंद्रमा के समान बढ़े चले जा रहे हैं, ये जो ( भिक्खुओं से ) उसी प्रकार घिरे हुए है वैसे चंद्रमा तारों से, ये जो अपने सावको (श्रावकों) से घिरे समण है, वे जो नरों में सिंह है, ये ही तेरे पिता है !

चक्क-वरङ्कित-रत्त-सुपादो, लक्खण-मण्डित-आयतपण्हि।
चामर-छत-विभूसित-पादो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥1॥
सक्य-कुमार-वरो सुखुमालो, लक्खण-चित्तिक-पुण्ण-सरीरो।
लोकहिताय गतो नरवीरो, एस हि तुय्ह नरसीहो॥2॥

पुण्ण-ससङ्क-निभो मुखवण्णो, देवनरान पियो नरनागो।
मत्त-गजिन्द-विलासित-गामी, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥3॥

खत्तिय-सम्भव-अग्गकुलीनो, देव-मनुस्स-नमस्सित-पादो।
सील-समाधि-पतिट्ठित-चित्तो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥4॥
आयत-युत्त-सुसण्ठित-नासो, गोपखुमो अभिनील-सुनेत्तो।
इन्दधनु-अभिनील-भमूको, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥5॥
वट्ट-सुवट्ट-सुसण्ठित-गीवो, सीहहनु मिगराज-सरीरो।
कञ्चन-सुच्छवि उत्तम-वण्णो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥6॥
सिनिद्ध-सुगम्भीर-मञ्जु-सुघोसो, हिङ्गुलबद्ध-सुरत्त-सुजिव्हो।
वीसति-वीसति सेत सुदन्तो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥7॥
अञ्जन-वण्ण-सुनील-सुकेसो, कञ्चन-पट्ट-विसुद्ध-नलाटो।
ओसधि-पण्डर-सुद्ध-सुवण्णो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥8॥
गच्छति नीलपथे विय चन्दो, तारगणा-परिवेठित-रूपो।
सावक-मज्झगतो समणिन्दो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥9॥

भाषाविज्ञान में भी "भैंस" के साथ ज्यादती हुई है। शब्दकोश में " भैंस " का सिर्फ एक अर्थ है, जबकि "गो" (गाय) के वैदिक कोश ...
11/03/2024

भाषाविज्ञान में भी "भैंस" के साथ ज्यादती हुई है। शब्दकोश में " भैंस " का सिर्फ एक अर्थ है, जबकि "गो" (गाय) के वैदिक कोश में 22, संस्कृत कोश में 25 एवं हिंदी कोश में 29 अर्थ हैं।

"गो" से अनेक शब्द भी बनते है; मिसाल के तौर पर गवाक्ष, गोहार, गेहूँ, गोधन, गोधूली, गोष्ठी, गोत्र, गोबर, गोरस आदि, जबकि "भैंस" से अनेक शब्द नहीं बनते हैं।

दूध का एक पर्यायवाची "गोरस" भी है। बेचारी भैंस के दूध को आज तक किसी ने "भैंसरस" नहीं कहा। गाय को धन माना गया है - गोधन। किंतु भैंस को तो धन भी नहीं माना गया है।

भैंस को लेकर कई अपमानजनक कहावतें हिंदी में प्रचलित हैं, यथा - काला अक्षर, भैंस बराबर (अनपढ़ व्यक्ति), भैंस के आगे बीन बजावै, भैंस रही पगुराय (बुद्धिहीन को उपदेश देना) आदि।

इतना ही नहीं "गो" के पर्यायवाची भी 27 हैं, जबकि "भैंस" का पर्यायवाची सिर्फ एक है। कारण कि संस्कृति की बुनावट भाषा पर प्रभाव डालती है।

यह 16वीं सदी का दौर था। इटली में एक व्यक्ति रहा करता था। यह व्यक्ति एक दार्शनिक था, एक गणितज्ञ था और एक वैज्ञानिक था। सब...
20/02/2024

यह 16वीं सदी का दौर था। इटली में एक व्यक्ति रहा करता था। यह व्यक्ति एक दार्शनिक था, एक गणितज्ञ था और एक वैज्ञानिक था। सबसे बढ़कर यह सत्य का खोजी था। लेकिन कभी कभी सत्य की खोज करना व्यवस्था को रास नहीं आता। क्योंकि सत्य अकसर ही यथास्थिति को चुनौती दे डालता है।

इस व्यक्ति का नाम था ब्रूनो। ब्रूनो रात्रि आकाश को निहारना पसंद करता था। वह घंटों तक सितारों का अवलोकन करता रहता था। उस समय यूरोप में कॉसमॉस का ज्ञान प्राचीन रोमन व ग्रीक विचारों पर आधारित था, खासतौर पर टॉलमी व अरस्तु के विचारों पर। टॉलमी के मॉडल के हिसाब से पृथ्वी पूरी कॉसमॉस का केंद्र थी। सभी आसमानी पिंड, चाँद, सितारे, सूरज सब के सब पृथ्वी की परिक्रमा करते थे।

पृथ्वी को केंद्र मानने वाला यह मॉडल प्राचीन काल के ज्ञान विज्ञान व तकनीकी की सीमाओं पर आधारित था क्योंकि आसमान के पिंडों की गति सामान्य तौर पर ऐसी ही लगती है कि मानो वे पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हों।

उन दिनों यूरोप में कैथोलिक चर्च का बोलबाला था, खासतौर पर रोम व इटली में। टॉलमी का यह मॉडल चर्च व उस समय की यूरोप की सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था यानी सामंतवाद के अनुकूल था। चर्च का मानना था कि ईश्वर ने पृथ्वी को अपनी सृष्टि के केंद्र में रखा है। ठीक वैसे ही जैसे राजा या सम्राट राज्य व्यवस्था के केंद्र में होता था।

इस दृष्टिकोण को कोई भी चुनौती सीधे तौर पर चर्च और उसकी सत्ता को चुनौती थी। अगर कोई ऐसा करता तो उसके लिये सिर्फ एक ही सजा निर्धारित थी। मौत की सजा। लेकिन ब्रूनो ने ठीक वही किया। ब्रूनो ने ब्रह्माण्ड का एक नया मॉडल प्रस्तुत कर दिया,
जिसके केंद्र में पृथ्वी की बजाय सूर्य था।

हालांकि यह मॉडल बिलकुल ही नया नहीं था लेकिन इससे पहले किसी की हिम्मत ही न हुई कि चर्च के खिलाफ बोल सके। ब्रूनो ने यह घोषणा करके चर्च को आग बबूला कर दिया। हालांकि सूर्य भी ब्रह्माण्ड का केंद्र नहीं है लेकिन ब्रूनो के समय में यह भी पुराने विचारों व सत्ता को चुनौती ही थी। साथ ही इसने सदियों से जकड़े हुए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया था।

यह एक रेडिकल विचार था जिसने उस समय व्याप्त विश्व दृष्टिकोण की चूलें हिला दी थी। ब्रूनो ने बताया कि धरती स्थिर नहीं है बल्कि सूर्य के चक्कर लगाती है। चर्च ने ब्रूनो को कहा कि वह अपनी जबान बंद रखे। ब्रूनो ने इंकार कर दिया। उसने कहा कि वह सत्य का रास्ता नहीं छोड़ेगा। उसका मानना था कि परिवर्तन अवश्यंभावी है। यह एक खतरनाक विचार था। चर्च ने उसे धमकियाँ दी, प्रलोभन दिये लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ।

उसने अपने साथी नागरिकों को प्रेरित किया कि वे भी पुराने व गलत विचारों का परित्याग करें व सत्य और विज्ञान के रास्ते पर चलें।

1600 ईस्वी में ब्रूनो को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर ईश निंदा व विधर्म का आरोप लगाया गया। ब्रूनो ने अपने मुक़दमे की खुद पैरवी की और सभी आरोपों की धज्जियाँ उड़ा दी। लेकिन इसके बावजूद ब्रूनो को दोषी घोषित कर दिया गया और उसे जिंदा जला डालने की सजा सुनाई गयी।
17 फरवरी 1600 यानी आज के दिन उसे जिंदा जला दिया गया।

तो क्या ब्रूनो सच में हार गया था? बिलकुल भी नहीं। ब्रूनो भले ही आग में जल गया हो लेकिन उसके विचारों की लौ जलती रही। आज सम्पूर्ण जगत यह मानता है कि धरती ब्रह्माण्ड का केंद्र नहीं है। ब्रूनो ने सत्य व विज्ञान के लिये शहादत दी थी।

उसकी कहानी हमें याद दिलाती है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण कितना महत्वपूर्ण है। यह भी कि सत्य और परिवर्तन का रास्ता मुश्किलों से भरा होता है। यह भी कि किसी भी तरह की मुश्किल में सत्य का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिये।

यह हमें बताती है कि दुनिया सतत परिवर्तनशील है। परिवर्तन अवश्यंभावी है। पुराने विचारों, पुरानी व्यवस्थाओं को नए के लिये मार्ग प्रशस्त करना ही होगा। लेकिन यह मार्ग कुर्बानियां भी मांगता है।

यह कहानी हमें अज्ञान व असहिष्णुता के खतरों से भी अवगत करवाती है। साथ ही यह भी बताती है कि ज्ञान व सच की हर हाल में रक्षा करनी चाहिये। यह हमें व्यवस्था पर सवाल उठाने, रूढ़िवाद को चुनौती देने और बदलाव का समर्थन करने की प्रेरणा देती है।

तो आइये ब्रूनो को याद करें, उसकी शहादत को सम्मान दें। साथ ही यह संकल्प लें कि हम अपने में और अपनी आने वाली पीढ़ियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करेंगे। अपने बच्चों को रूढ़िवाद व अंधविश्वास से दूर रखेंगे। उन्हें सवाल उठाना सिखाएंगे।

साभार : डॉक्टर नवमीत

02/12/2023

गोरखनाथ कबीर से पहले हुए। कबीर ने गोरख की प्रशंसा में झड़ी लगा दी है।

कबीर ने लिखा है कि गोरख की साखी अमर है। मैं तो मन को ही गोरख बना देना चाहता हूँ।

कबीर ने लिखा है .... " साखी गोरखनाथ ज्यूँ, अमर भए कलि माँहि"।

एक अन्य प्रसंग में कबीर ने गोरख के बारे में लिखा है ....." मन गोरख मन गोविंदौ, मन ही औघड़ होई "।

गोरख से तुलसी बहुत नाराज थे। वे मानते थे कि कलियुग लाने में गोरख की भी भूमिका है। ध्यान रखिए, तुलसी ने अपने पूरे साहित्य में हिंदी के सिर्फ एक कवि का नाम लिया है और वे कवि गोरख हैं। मगर तुलसी ने गोरख का नाम उनकी निंदा करने के लिए लिया है।

तुलसीदास ने सिर्फ कवितावली के कलि- वर्णन में गोरख का नाम लिया है - गोरख जगायो जोग, भगति भगायो लोग अर्थात गोरख ने योग जगाकर भक्ति को लोगों के बीच से भगा दिया है।

तुलसीदास का मानना है कि गोरखनाथ भक्ति विरोधी थे। गोरख की यह विचारधारा उन्हें पसंद नहीं थी। इसीलिए गोरख को उन्होंने कलि- वर्णन में स्थान दिया। हिंदी के किसी भी कवि का नाम नहीं लेने वाले तुलसीदास को गोरख का नाम लाचारी में लेना पड़ा। इससे गोरख की गरिमा को पहचानी जा सकती है।

शायद अब समझ गए होंगे कि गोरख वैचारिक रूप से कबीर के खेमे के कवि थे और यही कारण है कि हिंदी में गोरख को बदनाम करने के लिए गोरखधंधा जैसे शब्द का प्रचलन हुआ, जैसे कबीर के लिए कबीरा।

यह गोरखधंधा शब्द आगे चलकर यह साबित करेगा कि गोरखनाथ तिकड़मबाज कवि थे जो तिकड़म से अवैध कमाई किया करते थे। गोरखधंधा में यही भाव है।

कबीर ने जोगी गोरखनाथ की तारीफ के पुल बाँधे हैं, मगर फागुन में दोनों बदनाम हुए, ऐसे मानो दोनों गाली- गलौज के कवि हैं - एक कबीरा सा रा रा ऽ और दूसरा जोगीरा सा रा रा ऽ ।
(कॉपी.. प्रो राजेंद्र प्रसाद सिंह )

28/11/2023
रोमिला थापर जी अपनी इतिहास की पुस्तक “भारत का इतिहास” नामक पुस्तक की पेज नम्बर 31, 32 पर लिखती है कि आर्य भारत में अर्ध-...
14/11/2023

रोमिला थापर जी अपनी इतिहास की पुस्तक “भारत का इतिहास” नामक पुस्तक की पेज नम्बर 31, 32 पर लिखती है कि आर्य भारत में अर्ध-विचरण पशुचारी के रूप में आये थे।

फिर लिखते हैं कि वैदिक राजा मुख्यतः सैनिक नेता होता था।

प्रश्न यह है कि ऐसी जानकारी लेखिका रोमिला थापर जी को किस पुरातात्विक अभिलेख से हुई? वह पुरातात्विक अभिलेख किस लिपि भाषा में लिखा हुआ था?
इसकी पूरी जानकारी विस्तार से देना चाहिए था?

क्या है कि किसी देश का इतिहास कथा-कहानी या साहित्य नही होता है, देश का इतिहास लिखने के लिए पुरातात्विक प्रमाण की आवश्यकता होती है।
उसमें भी पुरातात्विक प्रमाण में पठनीय अभिलेख की बहुत ज्यादा जरूरत होती है।

वैसी परिस्थिति में रोमिला थापर जी या आर्य अनुयाई को बताना चाहिए कि वह पठनीय अभिलेख कहाँ और किस लिपि में है?

डोनाल्ड मैकेंजी ने 1928 में " बुद्धिज्म इन प्री - क्रिश्चियन ब्रिटेन " नामक किताब लिखी है। मतलब कि ईसा से पहले ब्रिटेन म...
25/10/2023

डोनाल्ड मैकेंजी ने 1928 में " बुद्धिज्म इन प्री - क्रिश्चियन ब्रिटेन " नामक किताब लिखी है। मतलब कि ईसा से पहले ब्रिटेन में बुद्धिज्म था।

द टेलिग्राफ, 19 अक्टूबर, 2023 में एक रिपोर्ट छपी है कि ब्रिटेन के हैम्पशायर में एक किसान के खेत से सिक्का मिला है।

सिक्का सोने का है। नाखून से भी छोटा है। इसे मेटल डिक्टेटरिस्ट लेविस फज ने खोजा है। यह खोज मार्च, 2023 की है।

सिक्का का समय इतिहासकारों ने 50 - 30 ई. पू. बताया है। हमें सिक्के पर अंकित आठ आरे का धम्म चक्र देख कोई आश्चर्य नहीं हुआ।

आपको भी ईसा से पहले ब्रिटेन में बुद्धिज्म का धम्म चक्र देख आश्चर्य नहीं करना चाहिए।

ये सिक्का बाहर का नहीं है। इस पर ब्रिटेन के एक राजा का Esunertos का नाम लिखा है। यह उन्हीं का यह सिक्का है। बाहर से नहीं आया है।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद सिंह, भाषा वैज्ञानिक

Shining stars of Ramsara Selected in BSF, CISF & CRPF.
23/08/2023

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