05/05/2024
नरसिंह गाथा यानी बुध को ही नरसिंह कहा जाता है।
नरसिंह-The Lion 🦁 of Man !
जिस समय अपने पिता राजा शद्धोधन के आग्रह पर ‘भगवा बुध’ कपिलवस्तु पधारे थे, उस समय राहुल-माता ने राहुल को इन्हीं शब्दों में तथागत का परिचय दिया था।
(१) स्निग्ध, कृष्ण वर्ण के कोमल तथा घुंघराले (इनके) केश है। सूर्य के सदृश निर्मल धरातल युक्त ( इनका ) ललाट है। सुंदर, ऊंची, मृदु एवं लंबी (इनकी) नाशिका है। ऐसे नरसिंह (श्रेष्ठ पुरुष ) अपने रशिम जाल को बिखेरे हुए हैं।
(२) जिनके चरण रक्त-वर्ण च्रक से अलंकृत हैं, जिनकी एड़ी सुन्दर हैं, जिनके चरण चंवर तथा छत्र से सुशोभित हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है।
(३) ये जो सुकुमार शाक्य कुमार है, ये जो सुन्दर चिन्हों से युक्त संपूर्ण शरीर से संपन्न है। जिन्होने लोकहित के लिए गृहत्याग किया है,वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
(४) जिनका मुख पूर्ण चन्द्र के समान प्रकाशित है, ये जो नरों में हाथी के समान हैं तथा देवताओं और नरों सभी के प्रिय हैं, ये जो मद-मस्त गजराज की तरह चले जा रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
(५) ये जो अग्र *खत्तिय (क्षत्रिय) कुलोत्पन्न हैं, ये जिनके चरणो की देव-मनुष्य सभी वंदना करते हैं, ये जिनका चित्त शील-समाधी में सुप्रतिष्ठित हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है।
(६) ये जिनकी नासिका चौड़ी तथा सुडौल है, जो नरों में वृषभ के समान हैं, ये जिनके नेत्र सुनील वर्ण हैं, ये जिनकी भौएं इन्द्रधनुष के समान हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है। (७) ये जिनकी ग्रीवा गोलाकार हैं, ये जिनकी ठोढ़ी मृगराज के समान है, ये जिनका वर्ण सुवर्ण के समान हैं, आकर्षक हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
(८) ये जिनकी वाणी स्निग्ध हैं, गंभीर हैं, सुन्दर हैं, ये जिनकी जिह्वा सिंदूर के समान रक्तवर्ण हैं, ये जिनके मुंह में श्वेत वर्ण के चालीस-चालीस दांत हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है। (९) ये जिनके केस सुरमे के समान सुनील वर्ण हैं, ये जिनका ललाट कञ्चन के समान दीप्त हैं, ये जिनका शरीर औषधि-तारे के समान शुभ्र वर्ण हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता है। (१०) ये जो तारागण से घिरे चंद्रमा के समान बढ़े चले जा रहे हैं, ये जो ( भिक्खुओं से ) उसी प्रकार घिरे हुए है वैसे चंद्रमा तारों से, ये जो अपने सावको (श्रावकों) से घिरे समण है, वे जो नरों में सिंह है, ये ही तेरे पिता है !
चक्क-वरङ्कित-रत्त-सुपादो, लक्खण-मण्डित-आयतपण्हि।
चामर-छत-विभूसित-पादो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥1॥
सक्य-कुमार-वरो सुखुमालो, लक्खण-चित्तिक-पुण्ण-सरीरो।
लोकहिताय गतो नरवीरो, एस हि तुय्ह नरसीहो॥2॥
पुण्ण-ससङ्क-निभो मुखवण्णो, देवनरान पियो नरनागो।
मत्त-गजिन्द-विलासित-गामी, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥3॥
खत्तिय-सम्भव-अग्गकुलीनो, देव-मनुस्स-नमस्सित-पादो।
सील-समाधि-पतिट्ठित-चित्तो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥4॥
आयत-युत्त-सुसण्ठित-नासो, गोपखुमो अभिनील-सुनेत्तो।
इन्दधनु-अभिनील-भमूको, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥5॥
वट्ट-सुवट्ट-सुसण्ठित-गीवो, सीहहनु मिगराज-सरीरो।
कञ्चन-सुच्छवि उत्तम-वण्णो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥6॥
सिनिद्ध-सुगम्भीर-मञ्जु-सुघोसो, हिङ्गुलबद्ध-सुरत्त-सुजिव्हो।
वीसति-वीसति सेत सुदन्तो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥7॥
अञ्जन-वण्ण-सुनील-सुकेसो, कञ्चन-पट्ट-विसुद्ध-नलाटो।
ओसधि-पण्डर-सुद्ध-सुवण्णो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥8॥
गच्छति नीलपथे विय चन्दो, तारगणा-परिवेठित-रूपो।
सावक-मज्झगतो समणिन्दो, एस हि तुय्ह पिता नरसीहो॥9॥